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आज बादलों ने फिर साजिश की
जहाँ मेरा घर था वहीं बारिश की
अगर फलक को जिद है बिजलियाँ गिराने की
तो हमें भी जिद है वहीं पर आशियाँ बसाने की |
ना पूछो कि मेरी मंजिल कहाँ है
अभी तो सफर का इरादा किया है
ना हारूंगा हौंसला उम्र भर
ये मैंने किसी से नहीं खुद से वादा किया है |
निगाहों में मंजिल थी
गिरे और गिरकर संभलते रहे
हवाओं ने बहुत कोशिश की
मगर चिराग आंधियों में भी जलते रहे |
सामने हो मंजिल तो रास्ते ना मोड़ना
जो भी मन में हो वो सपना मत तोड़ना
कदम कदम पर मिलेगी मुश्किल आपको
बस सितारे छूने के लिए जमीन मत छोड़ना |
राह-ए-ज़िन्दगी में ऐसे मोड़ भी आते है,
सीधे रखे कदम भी डगमगा जाते है,
बहके कदमो को जो संभाल पाते है,
वो मुक़म्मल इंसान कहलाते है।
जिनमे अकेले चलने के हुनर होते है,
अंत में उनके पीछे काफिले होते है,
भंवर से लड़ो तुंद लहरों से उलझो,
कहाँ तक चलोगे किनारे-किनारे।
रहने दे आसमान ज़मीन की तलाश कर,
सब कुछ यही है ना कही और तलाश कर,
हर आरज़ू पूरी हो तो जीने का क्या मज़ा,
जीने के लिए बस एक कमी की तलाश कर।
हर जज्बात को जुबान नहीं मिलती,
हर आरजू को दुआ नहीं मिलती,
मुस्कान बनाये रखो तो साथ है दुनिया,
वर्ना आंसुओ को तो आंखो मे भी पनाह नहीं मिलती।
तेरे गिरने में तेरी हार नहीं,
तू आदमी है अवतार नहीं,
गिर, उठ, चल, दौड़, फिर भाग
क्योंकि जीत संक्षिप्त है इसका कोइ सार नहीं।
परिंदों को मंजिल मिलेगी यक़ीनन ये फैले हुए उनके पर बोलते हैं
अक्सर वो लोग खामोश रहते हैं ज़माने में जिनके हुनर बोलते हैं
जो सफर की शुरुआत करते हैं,
वो मंज़िल को पार करते हैं,
एकबार चलने का होंसला तो रखो,
मुसाफिरों का तो रस्ते भी इंतज़ार करते हैं।
सीढियां उन्हें मुबारक हो जिन्हें सिर्फ छत तक जाना है ….
मेरी मंज़िल तो आसमान हैं और रास्ता मुझे खुद बनाना है।
मैं क्यों डरूं की ज़िन्दगी में क्या होगा ….
मैं क्यों सोचूं की बुरा क्या होगा ….
बढ़ता रहूँगा अपनी मंज़िल की ओर ….
मिल गई तो ठीक … वरना तजुर्वा होगा.
ज़मीन पर बैठ क्यों आसमान देखता है ….
अपने पंखो को खोल …. ये ज़माना सिर्फ उड़ान देखता है.
जिनको कहना है कहने दो …
अपना क्या जाता है,
ये वक्त वक्त की बात है और …
वक्त सभी का आता है.
हौसला रख वो मंजर भी आयेगा …
प्यासे के पास समन्दर भी आयेगा,
हार कर न बैठ ऐ मंजिल के मुसाफिर ….
मंजिल भी मिलेगी और मिलने का मज़ा भी आयेगा।
ताल्लुक़ कौन रखता है किसी नाकाम से लेकिन,
मिले जो कामयाबी सारे रिश्ते बोल पड़ते हैं,
मेरी खूबी पे रहते हैं यहां, अहल-ए-ज़बां ख़ामोश,
मेरे ऐबों पे चर्चा हो तो, गूंगे बोल पड़ते हैं।
ज़मीर जिन्दा रख, कबीर जिंदा रख,
सुल्तान भी बन जाये तो, दिल में फ़कीर जिंदा रख,
हौसले के तरकश में कोशिश का वो तीर जिंदा रख,
हार जा चाहे जिंदगी में सब कुछ,
मगर फिर से जीतने की उम्मीद जिंदा रख।
ये मंजिलें बड़ी जिद्दी होती हैं, हासिल कहां नसीब से होती हैं।
मगर वहां तूफान भी हार जाते हैं, जहां कश्तियां जिद्द पे होती हैं।।
कर लेता हूँ बर्दाश्त हर दर्द इसी आस के साथ,
कि खुदा नूर भी बरसाता है … आज़माइशों के बाद!!